नाथ साहित्य वाक्य
उच्चारण: [ naath saahitey ]
उदाहरण वाक्य
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- ये नाथ साहित्य के आरम्भकर्ता माने जाते हैं।
- गोरखनाथ नाथ साहित्य के आरम्भकर्ता माने जाते हैं।
- गोरखनाथ नाथ साहित्य के आरम्भकर्ता माने जाते हैं।
- गोरखनाथ नाथ साहित्य के आरम्भकर्त्ता माने जाते हैं ।
- [संपादित करें] सिद्ध और नाथ साहित्य
- सिद्ध और नाथ साहित्य [संपादित करें]
- उसी के संदर्भ में उन्होंने नाथ साहित्य का विवेचन किया है।
- नाथ साहित्य, सिद्ध साहित्य, जैन साहित्य आदि इस कोटि में आएंगे।
- इन सम्पदाओं में सिद्ध साहित्य, नाथ साहित्य और जैन साहित्य प्रमुख हैं।
- हिंदी के आदि काल की पीठिका के रूप में इतिहासकारों ने जैन, सिद्ध व नाथ साहित्य को लिया है।
- उन्होंने संधिकाल में जैन, सिद्ध तथा नाथ साहित्य को व चारनकाल में वीरगाथात्मक रचनाओं को समाविष्ट किया है.
- हिन्दी साहित्य में संत कवि जिस विचारधारा को लेकर अपनी वाणी की रचना में प्रवृत्त हुये हैं उनका मूल सिद्ध तथा नाथ साहित्य में है।
- रुक्ष और उपदेशात्मक साहित्य: बौद्ध, जैन, सिद्ध और नाथ साहित्य में उपदेशात्मकता की प्रवृत्ति है, इनके साहित्य में रुक्षता है ।
- नाथ साहित्य ने खश जनित गढ़वाली भाषा पर शैलीगत एवम शब्द सम्पदा गत प्रभाव डाला किन्तु उसकी आत्मा एवम व्याकरणीय संरचना पर कोई खास प्रभाव ना डाल सकी.
- हिन्दी साहित्य के आदिकाल की सामग्रियों का अगर विश्लेषण किया जाए तो कहा जा सकता है कि सिद्ध साहित्य और नाथ साहित्य की परम्पराएँ नेपाल में समृद्ध रूप में मिलती हैं ।
- इस समय दरम्यान अनेक महत्वपूर्ण कवियों ने अपनी रचनाएं की हैं जिनमें जैन अपभ्रंश साहित्य, बौद्ध एवं नाथ साहित्य, डिंगल और पिंगल भाषा के ग्रंथ, चारण साहित्य तथा रासो काव्य का प्राधान्य रहा है।
- अन्य सुधी आलोचकों ने जैन साहित्य, सिद्ध साहित्य और नाथ साहित्य की तर्ज़ पर ' दलित-लेखन, ' ' महिला-लेखन, ' ' अल्पसंख्यक-लेखन ' और ' मुस्लिम-लेखन ' जैसे अलगाववादी शब्दों को जिस तेज़ी से उछाला और उछाल रहे हैं वह किसी से ढका-छुपा नहीं है.
- मतलब साफ़ है कि यह लेखन साहित्य के केन्द्र में बैठे एक विशिष्ट समाज की स्वकल्पित मुख्य धारा से मेल नहीं खाता, इसलिए इसकी अलग पहचान ज़रूरी है, ताकि उपयुक्त समय पर एक सोची-समझी साजिश के तहत इसे साहित्य के हाशिये पर रखते हुए हिन्दी साहित्य के भव्य भवन में उसी तरह दया पूर्वक बित्ता भर ज़मीन दे दी जाय, जिस तरह सिद्ध साहित्य, नाथ साहित्य और जैन साहित्य को दी गई.
- यदि गढ़वाल में दरिया वाणी में मन्तर पढ़े जायेंगे तो राज्शथानी भाषा का प्रभाव गढवाली पर आना ही था जिस तरह कर्मकांड की संस्कृत भाषा ने गढ़वाली भाषा को प्रभावित किया उसी तरह नाथ साहित्य ने गढवाली भाषा को प्रभावित किया किन्तु यह कहना कि नाथ साहित्य गढवाली कि आदि भाषा है इतिहास व भाषा के दोनों के साथ अन्याय करना होगा यदि ऐसा होता तो अन्य लोक साहित्य में भी हमें इसी तरह क़ी भाषा के दर्शन होते.
- यदि गढ़वाल में दरिया वाणी में मन्तर पढ़े जायेंगे तो राज्शथानी भाषा का प्रभाव गढवाली पर आना ही था जिस तरह कर्मकांड की संस्कृत भाषा ने गढ़वाली भाषा को प्रभावित किया उसी तरह नाथ साहित्य ने गढवाली भाषा को प्रभावित किया किन्तु यह कहना कि नाथ साहित्य गढवाली कि आदि भाषा है इतिहास व भाषा के दोनों के साथ अन्याय करना होगा यदि ऐसा होता तो अन्य लोक साहित्य में भी हमें इसी तरह क़ी भाषा के दर्शन होते.
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